हाथरस।संग का असर लगता है, एक संग वह होता है जो इंसान को पार कर देता है दूसरा संग इंसान को गर्त में डाल देता है। बीडी. सिगरेट, तम्बाकू को छोड़ना कोई बड़ी बात नहीं है। मुख्य तो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी वह विकार हैं जो इंसान को देवत्व से उतार कर असुरत्व की ओर ले जाते हैं। शिक्षक की सेवा सूर्य के समान है जो विद्यार्थिंयों के जीवन से अंधकार को मिटा सकती है। परन्तु यदि सूर्य को ही ग्रहण लग जाये तो विद्यार्थियों को कौन सही पथ दर्शायेगा। यह अभिव्यक्ति मेडीकल विंग के मेरा भारत व्यसन मुक्त भारत अभियान की हाथरस में कोर्डीनेटर और अलीगढ़ रोड स्थित आनन्दपुरी केन्द्र की संचालिका बी.के. शान्ता बहिन ने शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र डायट में द्वितीय चरण में भावी शिक्षकों के लिए आयोजित कार्यक्रम में की।
उन्होंने प्रशिक्षु भावी शिक्षकों का आव्हान करते हुए कहा कि पहले खुद को बदलो तब उसका प्रभाव विद्यार्थियांे पर डाल सकेंगे। शिक्षक को तो रौल माॅडल के रूप में समाज की सेवा करनी चाहिए। जिसके चरित्र को देखकर विद्यार्थी चरित्रवान बन जाये, कहकर शिक्षा देने की भी आवश्कता नहीं पड़े।
शिक्षकों को खुद को धूम्रपान, मद्यपान आदि व्यसनों से मुक्त रखना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में व्यसन मुक्ति शिविर में चित्र प्रदर्शनी के माध्यम से धूम्रपान, मद्यपान और तम्बाकू के उपयोग से होने वाली हानियों को दर्शाया गया तथा ढाई इंच की बीड़ी है यही मौत की सीढ़ी है, धूम्रपान और मद्यपान जीवन को करते नर्क समान, सर्वश्रेष्ठ नशा नारायणी नशा, सण्डे हो या मण्डे नशे को मारो डण्डे आदि स्लोगनों के माध्यम से भी शिक्षण प्रशिक्षुओं को प्रेरित किया गया।
इस अवसर पर डायट प्रवक्ता इन्दिरा जायसवाल ने संस्था के सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए अपने जीवन के अनुभवों से विद्यार्थियों को प्रेरित किया। उनके अनुसार तम्बाकू चाहे मंजन के रूप में भी अगर लेंगे तो वह भी आदत बन जायेगा। आदत का छोड़ना असंभव नहीं लेकिन कठिन अवश्य हो जाता है। जीवन में सफलता स्वयं पर विश्वास और सत्यता के आधार पर ही मिलती है।
उन्होंने प्रशिक्षु भावी शिक्षकों का आव्हान करते हुए कहा कि पहले खुद को बदलो तब उसका प्रभाव विद्यार्थियांे पर डाल सकेंगे। शिक्षक को तो रौल माॅडल के रूप में समाज की सेवा करनी चाहिए। जिसके चरित्र को देखकर विद्यार्थी चरित्रवान बन जाये, कहकर शिक्षा देने की भी आवश्कता नहीं पड़े।
शिक्षकों को खुद को धूम्रपान, मद्यपान आदि व्यसनों से मुक्त रखना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में व्यसन मुक्ति शिविर में चित्र प्रदर्शनी के माध्यम से धूम्रपान, मद्यपान और तम्बाकू के उपयोग से होने वाली हानियों को दर्शाया गया तथा ढाई इंच की बीड़ी है यही मौत की सीढ़ी है, धूम्रपान और मद्यपान जीवन को करते नर्क समान, सर्वश्रेष्ठ नशा नारायणी नशा, सण्डे हो या मण्डे नशे को मारो डण्डे आदि स्लोगनों के माध्यम से भी शिक्षण प्रशिक्षुओं को प्रेरित किया गया।
इस अवसर पर डायट प्रवक्ता इन्दिरा जायसवाल ने संस्था के सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए अपने जीवन के अनुभवों से विद्यार्थियों को प्रेरित किया। उनके अनुसार तम्बाकू चाहे मंजन के रूप में भी अगर लेंगे तो वह भी आदत बन जायेगा। आदत का छोड़ना असंभव नहीं लेकिन कठिन अवश्य हो जाता है। जीवन में सफलता स्वयं पर विश्वास और सत्यता के आधार पर ही मिलती है।




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