- यतेंद्र सेंगर, संवाददाता
सासनी। एक बार वाल्मीकि जी तपस्या में बैठे थे। लंबे समय तक ईश्वर स्मरण के लिए तप करने लगे। तप करने में वह इतने मग्न हो गये कि उनके पूरे शरीर पर दीमक लग गई। लेकिन उन्होंने बिना तपस्या भंग किए निरंतर अपनी साधना पूरी की और इसके बाद ही आंखें खोली तब दीमक को हटाया। कहा जाता है कि दीमक जिस जगह अपना घर बना लेते हैं, उसे वाल्मीकि कहते हैं, इसलिए इन्हें वाल्मीकि के नाम से जाना जाने लगा।
यह बातें महर्षि वाल्मीकि जयंती के शुभ अवसर पर नगर पंचायत अध्यक्ष राजीव कुमार वाष्र्णेय एवं अधिशासी अधिकारी द्वारा वाल्मीकी धर्मशाला में महर्षि वाल्मकी की प्रतिमा पर पुष्पहार पहनाते वक्त बताई। उन्होंने कहा कि महर्षि ने भगवान श्री राम की कथा पूरे मनोयोग से समर्पित होकर उनके जन्म से पूर्व ही लिख दिया। हमें महर्षि जाकर महर्षि वाल्मीकि के बताए मार्ग पर चलकर रामराज्य की पुनः स्थापना करने के लिए प्रतिज्ञावद्ध होना चाहिए। चेयरमैन और अधिशासी अधिकारी ने संयुक्त रूप से महर्षि बाल्मीकी की प्रतिमा पर पुष्पहार अर्पित किए एवं समस्त सफाई मित्रों का पुष्पहार एवं पटका पहनाकर तथा उनको प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
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