पीसी बागला कालेज में विधिक साक्षरता शिविर का हुआ आयोजन

हाथरस। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वाधान में श्री फूल चन्द्र बाॅगला विश्वविद्यालय हाथरस में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्रीमती शिव कुमारी की अध्यक्षता में किया गया। सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने शिविर में उपस्थित छात्र/छात्राओं को जानकारी देते हुये अपने उद्बोधन में विश्व मानवाधिकार दिवस के सम्बन्ध में जानकारी देते हुये बताया कि मानव अधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। वर्ष 1948 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर को हर साल इसे मनाये जाने की घोषणा की गयी थी। इसे सार्वभौमिक मानव अधिकार घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के सम्मान में प्रतिवर्ष इसे विशेष तिथि पर मनाया जाता है। मानवाधिकार का उच्चायुक्त कार्यालय मानवाधिकारों की घोषणा का  (380 के आसपास भाषाओं) में अनुवाद संग्रह और दुनिया भर में वितरण में के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड द्वारा सम्मानित किया गया। जैसा कि हम जानते हैं कि गरीबी मानव अधिकारों के हनन का सबसे बड़ा कारण है, इसलिए गरीबी को खत्म कर मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराए बिना मानव अधिकार के लिए लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। गरीबी की इसी समस्या को देखते विश्व मानवाधिकार दिवस पर कई सारे गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा गरीबी से लड़ने के रुपरेखा तैयार करने का कार्य किया गया है। इसके साथ ही शोषित समाज के लोगों को उनके मानव अधिकारों के विषय में जानकारी देकर उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरुक किया गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा है कि मानवाधिकार आयोग का गठन हो चुका है-अधिकारों की रक्षा के लिए वर्ष 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी स्थापना हो चुकी है। इसके सदस्यों में एक अध्यक्ष, एक वर्तमान अथवा पूर्व सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश, उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मानवाधिकार के क्षेत्र में जानकारी रखने वाले दो सदस्य, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचितजाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष शामिल होते हैं। अध्यक्ष सहित सभी सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। क्या है ‘मानव अधिकार‘-किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है. भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है। भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया. 12 अक्‍टूबर, 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया। आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं. जैसे बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार शामिल है। वरिष्ठ अधिवक्ता श्री हरीश कुमार शर्मा, द्वारा अपने वक्तव्य में प्राचीन महापुरूषांे के बारे में जानकारी देते हुये कहा है कि मानव अधिकार मानव के विशेष अस्‍तित्‍व के कारण उनसे संबंधित है इसलिए ये जन्‍म से ही प्राप्‍त हैं और इसकी प्राप्ति में जाति, लिंग, धर्म, भाषा, रंग तथा राष्‍ट्रीयता बाधक नहीं होती। मानव अधिकार को मूलाधिकार आधारभूत अधिकार अंतरनिहित अधिकार तथा नैसर्गिक अधिकार भी कहा जाता है। अशोक के आदेश पत्र आदि अनेक प्राचीन दस्तावेजों एवं विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों में अनेक ऐसी अवधारणाएं हैं जिन्हें मानवाधिकार के रूप में चिह्नित किया जा सकता है। आधुनिक मानवाधिकार कानून और इसकी अधिकांश अपेक्षाकृत व्यवस्थाओं का संबंध समसामयिक इतिहास है। प्राचार्य डा0 संदीप बसंल ने अपने वक्तव्य में सभी उपस्थित छात्र/छात्राओं व अध्यापिकाओं का आभार व्यक्त किया। उन्होने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से छात्र/छात्राओं को कानून की जानकारी प्राप्त होती है। शिविर का संचालान डा0 यू0पी0 सिंह द्वारा किया गया, तथा सभी महानूभावों का आभार व्यक्त किया गया।

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