हाथरस- सांसद राजेश दिवाकर ने लोकसभा में विधि एवं न्याय मंत्रालय से मांगी जानकारी

हाथरस।  हाथरस सांसद राजेश कुमार दिवाकर ने लोकसभा में न्यायालयों से सम्बन्धित जानकारी मांगी। श्री दिवाकर ने पूछा कि क्या विधि एवं न्याय मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि सम्पूर्ण देश में मामले की बढ़ती संख्या के अनुपात में न्यायालयों की संख्या और उसकी अवसंरचना विकसित नहीं हुई है, यदि हाॅ तो इस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया है और इस सम्बन्ध में क्या कदम उठाये गये हैं या उठाये जा रहे है।
क्या सरकार का विचार राज्यों को नये न्यायालयों, अवसंरचना के  विकास तथा न्यायालयों में सूचना प्रौद्योगिकी के लिये वित्तीय सहायता देने का है, यदि हाॅ तो तत्सम्बन्धी ब्यौरा क्या है और गत तीन वर्षो में और चालू वर्श के दौरान राज्य/संघ राज्यक्षेत्र-वार ऐसी कितनी सहायता जारी की गई है। क्या सरकार का विचार देश के विभन्न राज्यों में उच्चन्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालयों की पीठों सहित नये न्यायालयों को स्थापित करने का है, यदि हाॅ तो तत्सम्बन्धी ब्यौरा क्या है और इस सम्बन्ध में विभिन्न राज्य सरकारों से हाल ही में प्राप्त प्रस्तावों की वर्तमान स्थिति क्या है। इसके उत्तर में विधि एवं न्याय तथा इलेक्ट्रनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में राज्यमंत्री श्री पी.पी.चैधरी जी ने बताया कि अधीनस्थ न्यायालयों के लिये अवसंरचनात्मक सुविधाओं के विकास का प्राथमिक उत्तरदायित्व राज्य सरकारों का है। राज्य सरकारों के संवर्धन के लिये न्यायपालिका हेतु अवसंरचनात्मक सुविधाओं के विकास के लिये वर्श 1993-94 से एक केन्द्रीय प्रयोजित स्कीम (सीएसएस) प्रचालन में है। स्कीम के प्रारम्भ से राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को अब तक उपरोक्त के अधीन 5350 करोड़ रूपये की वित्तीय सहायता इस स्कीम के अधीन दी जा चुकी है।
उच्च न्यायालयों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार 31 दिसम्बर 2015 को अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत संख्या और कार्यरत संख्या क्रमशः 20502 और 16070 है। 4432 रिक्तियां है। इसके साथ-साथ अधीनस्थ न्यायालयों के लिये 16513 न्यायालय हाॅल/न्यायालय कमरे उपलब्ध थे और 2447 न्यायालय हाॅल/न्यायालय कमरे निर्माणाधीन थे।
अवसंरचनात्मक विकास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने के अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार न्यायालयों की सूचना और संचखर पौद्योगिकी के शक्तिकरण/कम्प्यूटरीकरण के लिये ई न्यायालय मिशन पद्धति परियोजना को भी कार्यान्वित कर रही है। इस स्कीम के अधीन निधियां मुख्यतः राष्ट्रीय सूचना केन्द्र और उच्च न्यायालयों को जारी की जा रही है। राज्य में अधीनस्थ न्यायालयों के गठन करने की विषयवस्तु सम्बन्धित राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत आती है। किसी उच्च न्यायालय की न्यायपीठ का गठन करने के लिये प्रस्ताव पर केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकार से सम्पूर्ण प्रस्ताव प्राप्त हो जाने के पश्चात ही विचार किया जाता है। जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ सम्बद्ध उच्च न्यायालय के न्यामूर्ति की सहमति भी है। देश के भिन्न-भिन्न भागों में उच्च न्यायालयों की न्यायपीठों का गठन करने के लिये अनुरोध कुछ राज्य सरकारों से प्राप्त हुए है। वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा विचार किये जाने के लिये सभी बाबवत कोई पूर्ण प्रस्ताव लम्बित नहीं है।
संविधान का अनुच्छेद 130 यह उपबन्ध करता है कि उच्चतम न्यायालय दिल्ली में या ऐसे अन्य स्थान पर अधिविष्ट होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति राष्ट्रपति के अनुमोदन के समय-समय पर नियत करे। भारत के विधि आयोग ने अपनी 229 वीं रिपोर्ट में यह सुझाव दिया था कि संविधानिक न्यायपीठ का गठन दिल्ली में किया जाये और चार अंतिम अपील न्यायपीठों का गठन दिल्ली में उत्तरी क्षेत्र चेन्नर्द/हैदराबाद में दिल्ली क्षेत्र कोलकाता में पूर्वी क्षेत्र और मुम्बई में पष्चिमी क्षेत्र में किया जाये यह मामला भारत के मुख्य न्यायमूर्ति को निर्दिष्ट किया गया था, जिन्होंने यह सूचित किया है कि मामले पर विचार करने के पश्चात पूर्ण न्यायालय ने अपनी 18 फरवरी 2010 को आयोजित बैठक में दिल्ली से बाहर उच्चतम न्यायालयों की न्यायपीठों का गठन करने का कोई औचित्य दिखाई नहीं पड़ा।

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